४ नवंबर, १९७२

 

समस्त अवचेतना.. (नीचेसे उभरनेकी मुद्रा) ।

 

 ( मौन)

 

   यह संवेदन नहीं है, यह ज्ञान नहीं है, यह एक प्रकारका... (माताजी हाथोंसे हवाको टटोलती है)... इसे विश्वास नहीं कहा जा सकता : यह एक निश्चिति है -- बोधमें निश्चिति -- कि एक 'आनंद' है जो.. जो हमारे लिये तैयार है, और अवचेतनामें परस्पर विरोधोंका एक पूरा जगत् दवा हुआ है जो इस तरह ऊपर उभरता है फिर हमें उसका अनुभव न हों । फिर.. कहा जा सकता है कि यह एक रणक्षेत्र है, परंतु पूर्णत: शांत । इसका वर्णन करना असंभव है ।

 

वर्णन असंभव है ।

 

  तो अगर मैं हिलूं-डुलूं नहीं और इस 'चेतना' में प्रवेश कर जाऊं तो समय बहुत अधिक तेजीसे और... एक प्रकारकी उज्ज्वल शांतिमें बीत जाता है । और जब कोई छोटी-सी चीज भी मुझे बाहर खींचती है तो लगता है कि मुझे नरकमें घसीटा जा रहा है । ऐसा है यह ।

 

  बेचैनी इतनी अधिक होती है कि यह लगता है कि इस तरह तुम एक मिनट या कुछ मिनट मी नहीं जी सकते । और फिर.. और फिर तुम भगवानको बुलाते हो... । तब तुम्हें लगता है कि तुम भगवान्की भुजाओंमें हो ।

 

   तब सब ठीक होता है ।